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आज़ादी / अवधेश कुमार

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<poem>
आज़ादी एक गोल वस्तु है
पृथ्वी की तरह
पहाड़ पर बर्फ़ बन कर जमती है
बादलों से बरसती है और
सागर में एक हरे द्वीप की
तरह तैरती है ।

वह महाद्वीप है, उपनिवेश है
लोहे की दीवार, तीसरी दुनिया
और नो मैंस लैण्ड भी; एक
झूठी लड़ाई है हिन्दुस्तान
और पाकिस्तान की सरहद पर
आज़ादी गेंद की तरह टप्पे
खाती है : मानव के भूगोल में
और उसकी सामाजिक सभ्यता में
वह उसकी जेब में रखी
मार्क्स की किताब है ।

हरे टोप और भूरी वर्दी वाले
सैनिक, अफ़्रीका के जंगलों में
ख़रगोश का शिकार करते हैं ।

काला आदमी अपनी आज़ादी को
झाग की तरह उगलता है ।

आज़ादी एक गोल वस्तु है
रिटायर्ड बूढ़े फ़ौजी की छाती पर
लटकते हुए तमग़े की तरह,
बच्चे गुलेल से उसका निशाना
साधते हैं, किशोर-छर्रे की बन्दूक़ से
और जवान सैनिक, उसे
मशीनगन की गोली से छेद देता है ।

वह बूढ़ा
क़ुर्बानी का एक अमूर्त मूर्तिशिल्प है
जो समुद्र के किनारे
स्वतन्त्रता की देवी की बग़ल में
खड़ा है, वह नंगा है, वह उस
सफ़ेद मूर्ति के साथ बलात्कार
करना चाहता है

उसके चेहरे पर
विजेता का-सा इत्मीनान और आवेश है
और ‘सूरज का सातवाँ बेड़ा’
उसे सलामी देता है

आज़ादी एक गोल वस्तु है
शून्य की तरह
और हथगोले की तरह
काग़ज़ की गोल पट्टी काटकर
अक्सर उसे हम
वियतनाम और अंगोला के
ज़ख़्मों पर चिपकाते हैं
और उसपर ख़ून के रंग से
सम्वेदना का एक
अन्तरराष्ट्रीय क्रास बनाते हैं ।

अन्त में फिर
आज़ादी एक गोल वस्तु है, गोल :
प्रश्नचिह्न के नीचे
गिरते हुए बिन्दु की तरह ।
</poem>
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