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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णुकांत पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उल्लू गया कबूतर के घर
बोला — भाई, आओ,
रात बहुत प्यारी लगती है
मैं नाचूँ, तुम गाओ ।
कहा कबूतर ने — भाई, तुम
सुबह - सुबह आ जाना,
तुम नाचो तो कौआ देखे
मैं भी गाऊँ गाना ।
</poem>
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उल्लू गया कबूतर के घर
बोला — भाई, आओ,
रात बहुत प्यारी लगती है
मैं नाचूँ, तुम गाओ ।
कहा कबूतर ने — भाई, तुम
सुबह - सुबह आ जाना,
तुम नाचो तो कौआ देखे
मैं भी गाऊँ गाना ।
</poem>