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<poem>
पुरातत्वविदों की टीम आई है
और इस स्थल का उत्खनन कर रही है
सूरज एकाएक जैसे ठिठक गया है
बहुत पुरानी चीजों के फिर दिख जाने के आश्चर्य से भरा हुआ
खुदाई में पुरानी सभ्यता के कई महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं
नीचे मिट्टी के दबे हुए मृदभांड हैं
मृदभांडों के अन्दर राख है
राख में मिट्टी के खिलौने और कुछ सिक्के हैं
इतने वर्षों तक राख की निगहबानी में
साथ सोते रहे सिक्के और खिलौने

सदियों की महानिद्रा से उठकर
आज जब आंखें खुलीं तो सिक्के ने देखा
कि दुनिया बहुत बदल चुकी है
वो राजा जिसका चित्र बदन पर अंकित है
उसका नामो निशान भी मिट चुका है
न उसकी आज्ञाएं हैं न उसका राज पाट

जिसके खनकने से बाजार की धड़कने बढ़ जाती थीं
जिनके न खनकने से घर ओढ़ लेते थे
गहरी उदासी की स्याह चादर
वह चारों ओर असहाय देख रहा है
सैर सपाटे राग रंग सोना चांदी धरम करम
राज्य और सत्ता की नसों में बहता खून गरम
महलों से लेकर सड़कों तक चौराहों की चमक दमक

ऐसा लगता है
अपनी घूमती हुई परछाईं के चक्र में फंसकर
वक्त के डैने लहूलुहान हो गए हैं
वक्त ही बहेलिया है ताक में बैठा हुआ

कुछ भी कर सकने और कुछ भी खरीद सकने का
उसका गुरूर टूटता हुआ दिखा
बाजार में अब चल रहे सिक्कों के उपहास का
पात्र होने का डर सताने लगा
गतमूल्य और हतप्रभ सिक्का सोचने लगा
अधिक से अधिक उन्हें किसी संग्रहालय में सजा दिया जाएगा
अच्छा होता-
मैं वर्षों की ठंडी राख में पकता हुआ खिलौना बन जाता
जिसे लेकर बच्चे भागते एक दूसरे से छीनते
और नाचने लगते खुशी से निहाल होकर
</poem>