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सधुक्कड़ी / अनिल मिश्र

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कोई चेहरा कुरूप नहीं होता
हर नाक सुन्दर होती है
सुन्दर होती हैं सभी आँखें
हम जांचते हैं पुराने पैमानों पर कुदरत की बनायी शक्ल
वह बदल रही है हर क्षण हो रही है पुनर्नवा
सांचे धरे के धरे रह जाते हैं

सोने के रुप को देखकर मोहना लाजिमी है
ईमान डगमगाता है कदम लड़खड़ाते हैं
लेकिन जैसे हर सुनहरी वस्तु सोना नही होती
हर सोने की तवारीख सुनहरी नहीं होती
मिट्टी में दबा कीचड़ में डूबा भी होता है सोना
देखना, टटोलना और जरुरत पड़े तो धोकर देख लेना

अशोक महान अकबर महान
महान ने वसूली कितनी लगान मजलूमों के जानों की
ध्वजा के दर्प में कितने नगर जले
मुकुट में जड़ी गईं पराजितों की आंखें
तलवारों पर चढ़ाई जाती रही खूनों की शान
इतिहास पढ़ना मगर पंक्तियों के बीच भी

किसी गली में मत लगाना फेरे मजनू या लैला बनकर
कि दिलफरेब मुस्काने जीने नहीं देतीं
दिल की धड़कनें सुनना लेकिन फिर गुनना भी
प्रेम कहीं भी हो सकता है पर हर जगह नहीं
आँखें खोलकर देखना मगर बन्द करके भी
अंगारों का क्या? फूल भी जलाते हैं मन और बदन

सिर पर चढ़कर बोलेगा, मगर है जादू ही
बुलबुलों में डूब मत जाना

घोड़े की सवारी करना
हाथी पर बैठना
रेगिस्तान में जब तप रही होगी रेत
काम आएंगे ऊंट ही
समुन्दर को देखना घंटों घंटों देखते रहना
उठती लहरों के गुमान में तोप न देना दुआर का कुआं
प्यास जब जागेगी बुझाएगा कुएं का जल ही

सिर कटा अमर होकर घूमने से अच्छा है जहर पी सो जाना
दुनिया बड़ी है और बहुत से देश हैं सुन्दर
आना जाना, बनता हो तो बना लेना कहीं ठिकाना
लेकिन बचा के रखना नक्शा अपने वतन का
क्या पता किस घड़ी पड़े लौट कर आना

खाली दिमाग में शैतान के रहने की कहावत पुरानी है
लेकिन भरे दिमाग से निकलकर देवता भी भाग जाएंगे,
खिड़की अगर हो न
सच बोलने की हिम्मत है तो जोर जोर से कहो
औरों को क्या खुद को धोखा दिया अभी तक
पहले अपनी ओर देखना फिर दूसरे पर उंगली उठाना
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