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|रचनाकार=पेरुमाल मुरुगन
|अनुवादक=मोहन वर्मा
|संग्रह=एक कापुरुष के गीत / पेरुमाल मुरुगन / मोहन वर्मा
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<poem>
राजा का आदेश हुआ है
सभी जीवित इनसानों की चमड़ी
उधेड़ डाली जाए ।

लोग ढूँढ़ कर निकाल लाए हैं
हजामत बनाने वाले पुराने
भोथरे टूटे-फूटे उस्तरे ।

वे लोग जो उस्तरों का बंदोबस्त कर सके हैं
चीख़ते - चिल्लाते चारों ओर दौड़ रहे हैं ।

कुण्ठित उस्तरे जो मोटी चमड़ियों में
खरोंच भी न लगा पाए
वे अब खोज रहे हैं नरम चमड़ियों को
और बालक और कलाकार
उनकी खाल तो कोमल होती है ।

आदेश है बच्चों की चमड़ियाँ
छिपाकर उतारी जाएँ ।

बच्चों को इकठ्ठा कर
विवश किया जाता है
वह कलाकारों की चमड़ियाँ उतरते हुए देखें ।
एक उस्तरा चेहरों की खाल उतार रहा है
दूसरा हथेलियों को लक्ष्य बना रहा है
तीसरा चीर रहा है उनकी पीठ को फाँकों में ।

तब वे धूप में सुखाकर
त्वचा के टुकड़ों को उठाकर
धर देते हैं बच्चों की हथेलियों पर
बच्चे थरथराते हैं, रोते हैं
आँखें बन्द कर लेते हैं
और सिकुड़ जाते हैं ।

और कलाकार —
गहरे घावों से
रिसता लहू लिए
खड़े रहते हैं
जताते हैं
जैसे और कुछ नहीं
केवल मुण्डन हुआ है उनके पूरे शरीर का ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोहन वर्मा'''
</poem>
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