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तो वे अपनी फूलों की क्यारियों की गोड़ाई कर रहे थे
उनके हाथ में एक बड़ा-सा जंग खाया चाकू था
जो हल्के-हल्के जमीन ज़मीन की मिट्टी उड़स रहा था
कामरेड तिवारी के हाथ में वह जंग खाया चाकू देख
मुझे उस तलवार की याद हो आई जो बचपन में मेरे घर हुआ करती थी
मेरे बचपन की वह तवारीखी तवारी्ख़ी तलवार एक देसी रियासत की लंबी लम्बी मुलाजिमत से रिटायर हुए एक रिश्तेदार की मार्फत मार्फ़त हमारे घर पहुँची थीउसकी म्यान लाल मखमल मख़मल से मढ़ी थीऔर उसकी गैर ग़ैर रिवायती मूठ पर सुनहरे बेल-बूटे छपे थे
वह नामुराद तलवार कभी कोठरी के अँधेरे में
कभी एक सीध में गड़ी दो खूँटियों पर टाँग दी जाती...
फिर उस तलवार की जिंदगी ज़िन्दगी में एक तब्दीली आईगाँव के कुछेक उत्साहीजनों की पहलकदमी पहलक़दमी पर
दशहरे के दौरान गाँव में रामलीला का सिलसिला शुरू हुआ
तो हफ्तेहफ़्ते-दस दिन को ही सही
रावण का रोल करने वाले के हाथों में वह लहराने लगी,
रावण के हाथों में तलवार लहराती
पृथ्वीराज चौहान या अमरसिंह राठौर होने के लिए काफ़ी है
रामलीला के बाद आए दिन तलवार घर की दहलीज दहलीज़ लाँघने लगी
जब भी गाँव का कोई नौजवान
गौंतरी के लिए अपनी या अपने भाई की ससुराल जाता
उन्हें अपनी भाभी की विदा कराने जाना था,
रिश्तेदारी की बात थी
देनी पड़ी उनको भी तलवार आखिरकारआख़िरकार
लेकिन इस बार दो-चार दिन क्या दो-चार हफ्तों हफ़्तों तक
वापस नहीं लौटी तलवार
(इस बीच कई और घरों से माँगा आ चुका था
तो आखिरकार खबर आख़िरकार ख़बर भिजवाई गई)
अगले दिन मामा जब आए तो उनके हाथ में थे तलवार के दो टुकड़े
बताया- — रास्ते में उचक्के मिले, छीनने लगे साइकिल
तो मैंने तलवार चलाई
उचक्कों का तो कुछ नहीं बिगड़ा, पर तलवार
साइकिले के फ्रेम फ़्रेम से जा टकराई
मूठ वाला आधा हिस्सा रहा मेरे हाथ में और....
जब तक सँभलूँ-सँभलूँ चोर तब तक साइकिल भी ले उड़े
इस तरह उस तवारीखी तवारीख़ी तलवार की एक भूमिका खत्म ख़त्म हुई...नीचे का आधा हिस्सा बढ़ई ने लकड़ी का हत्था लगा करलगाकर
चाकू में तब्दील कर दिया
उससे साग-सब्जी सब्ज़ी काटने का काम लिया जाने लगा
और मूठ वाला ऊपर का हिस्सा
बच्चों के खेल-खिलवाड़ की चीज चीज़ बन गया—गया —
हम राम-रावण का खेल खेलते
तो हमारे छोटे-छोटे हाथों में वह नाचता रहता