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{{KKRachna
|रचनाकार=जगदीश व्योम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कितना करो विरोध
गीत की, गति को
कौन रोक पाएगा !
गीत मेड़ पर
उगी दूब है
जो अकाल में भी
जी लेती
गीत खेजड़ी की
खोखर है
जीवन-जल
संचित कर लेती
जब तक हवा
रहेगी ज़िन्दा
हर पत्ता-पत्ता
गाएगा !
गीतों में है
गन्ध हवा की
श्रम की
रसभीनी सरगम है
गौ की आँख
हिरन की चितवन
गंगा का
पावन उद्गम है
जिस पल
रोका गया गीत को
सारा आलम
अकुलाएगा !
गीतों में
कबीर की साखी है-
तुलसी की चौपाई है
आल्हा की अनुगूँज
लहरियों में
कजरी भी लहराई है
गीत
समय की लहर
रोकने वाला
इसमें बह जाएगा!
</poem>
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|संग्रह=
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<poem>
कितना करो विरोध
गीत की, गति को
कौन रोक पाएगा !
गीत मेड़ पर
उगी दूब है
जो अकाल में भी
जी लेती
गीत खेजड़ी की
खोखर है
जीवन-जल
संचित कर लेती
जब तक हवा
रहेगी ज़िन्दा
हर पत्ता-पत्ता
गाएगा !
गीतों में है
गन्ध हवा की
श्रम की
रसभीनी सरगम है
गौ की आँख
हिरन की चितवन
गंगा का
पावन उद्गम है
जिस पल
रोका गया गीत को
सारा आलम
अकुलाएगा !
गीतों में
कबीर की साखी है-
तुलसी की चौपाई है
आल्हा की अनुगूँज
लहरियों में
कजरी भी लहराई है
गीत
समय की लहर
रोकने वाला
इसमें बह जाएगा!
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