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{{KKRachna
|रचनाकार=अम्बर रंजना पाण्डेय
|अनुवादक=अम्बर रंजना पाण्डेय
|संग्रह=
}}
<poem>
मेरे पिता आदर्श पुरुष नहीं हैं
वे स्त्रियों के प्रति शारीरिक हिंसा नहीं करते
पर लड़कियों को पिताओं की ज़िम्मेदारी समझते हैं ।
लड़कों की तरह उनके प्रति आज़ाद नहीं महसूस करते
उन्हें भय लगा रहता है
लड़की का कुछ बिगड़ न जाए
इज्ज़त न चली जाए ।
हमारे बीच हमेशा कुछ घुटा रहता है
एक तनाव और दबाव जो मुझे बेहद नापसन्द है ।
मैनें बहुत कोशिश की
उन्हें समझा सकूँ
कि उनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मुझसे प्यार करने की है
मुझसे या मेरे भावी जीवन से डरने की नही है ।
लेकिन वे कहते रहे
नहीं सदियों से चली आ रही परम्परा ग़लत नहीं हो सकती ।
मुझे यह सब सुनकर इतना गुस्सा आता है
कि उनसे नफ़रत होने लगती है
बस, एक बात है हमारे बीच जो मुझे
मेरे पिता से नफ़रत नहीं करने देती ।
गर्मियों की रातों में मैं अक्सर बरामदे में सो जाती थी
मेरे पिता मुझे कमरे में चल कर ठीक से सोने के लिए कहते
मेरी नींद खुल जाती पर मैं सोने का अभिनय करती
कि मैं ख़ुद चल कर कमरे तक चली जाऊँ यह संभव नहीं ।
मेरे पिता भी जानते थे मैं जगी हुई हूँ
मैं भी जानती थी मैं जगी हुई हूँ
लेकिन वे मुझे तुरई की बोरी की तरह कन्धे पर लादकर
पलंग पर सुला आते थे ।
'''मूल पोलिश से अनुवाद : अम्बर रंजना पाण्डेय'''
</poem>
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|अनुवादक=अम्बर रंजना पाण्डेय
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<poem>
मेरे पिता आदर्श पुरुष नहीं हैं
वे स्त्रियों के प्रति शारीरिक हिंसा नहीं करते
पर लड़कियों को पिताओं की ज़िम्मेदारी समझते हैं ।
लड़कों की तरह उनके प्रति आज़ाद नहीं महसूस करते
उन्हें भय लगा रहता है
लड़की का कुछ बिगड़ न जाए
इज्ज़त न चली जाए ।
हमारे बीच हमेशा कुछ घुटा रहता है
एक तनाव और दबाव जो मुझे बेहद नापसन्द है ।
मैनें बहुत कोशिश की
उन्हें समझा सकूँ
कि उनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मुझसे प्यार करने की है
मुझसे या मेरे भावी जीवन से डरने की नही है ।
लेकिन वे कहते रहे
नहीं सदियों से चली आ रही परम्परा ग़लत नहीं हो सकती ।
मुझे यह सब सुनकर इतना गुस्सा आता है
कि उनसे नफ़रत होने लगती है
बस, एक बात है हमारे बीच जो मुझे
मेरे पिता से नफ़रत नहीं करने देती ।
गर्मियों की रातों में मैं अक्सर बरामदे में सो जाती थी
मेरे पिता मुझे कमरे में चल कर ठीक से सोने के लिए कहते
मेरी नींद खुल जाती पर मैं सोने का अभिनय करती
कि मैं ख़ुद चल कर कमरे तक चली जाऊँ यह संभव नहीं ।
मेरे पिता भी जानते थे मैं जगी हुई हूँ
मैं भी जानती थी मैं जगी हुई हूँ
लेकिन वे मुझे तुरई की बोरी की तरह कन्धे पर लादकर
पलंग पर सुला आते थे ।
'''मूल पोलिश से अनुवाद : अम्बर रंजना पाण्डेय'''
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