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|रचनाकार=अम्बर रंजना पाण्डेय
|अनुवादक=अम्बर रंजना पाण्डेय
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<poem>
मैं किसी को सर्वशक्तिमान नहीं मान सकती
ईश्वर को भी नहीं ।
सब शक्तियाँ अपने पास रखनेवाला कैसे हो सकता है ईश्वर ?
सत्तालोलुप रखते है अपने पास सब शक्तियाँ ।

वे ही किसी पर नहीं करते विश्वास
ऐसे को मैं कैसे मान लूँ ईश्वर
और अन्तर भी क्या पड़ता है मेरे विश्वास करने न करने से ।

जब तुम्हारा सर्वशक्तिमान ईश्वर मुझपर विश्वास ही नहीं करे
कि मैं उसे ईश्वर मानती हूँ,
सत्ता का घमण्ड किस काम का
जो शक्तियाँ बाँट देता है ।
जो जो कुछ है उसके पास
उसपर प्यार की चाशनी चढ़ाकर बाँट देता है ।

वही हो सकता है ईश्वर,
जो मुझपर विश्वास करे
वह मेरा ईश्वर है ।

तुम्हारा अहंकारी ईश्वर तुम्हें मुबारक
मेरे पास समय कम है कि बैठी - बैठी उसे दिलाऊँ विश्वास
कि अब भी वही सबसे शक्तिशाली है
कि अब भी वह ईश्वर है
और कि मैं अब भी करती हूँ उसपर विश्वास ।

'''मूल पोलिश से अनुवाद : अम्बर रंजना पाण्डेय'''
</poem>
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