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|रचनाकार=अम्बर रंजना पाण्डेय
|अनुवादक=अम्बर रंजना पाण्डेय
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<poem>
बड़ी हूँगी तब चलेगा पता
जैसा कि दीदी कहती है
क्या डबलरोटी से भी ज़्यादा जलता है हृदय
प्रेम में स्तनों के नीचे ।

डबलरोटी तो भट्टी में रहती है देर तक
आग पर धधकती
इतना यदि मेरा हृदय जला प्रेम में
तो मैं कभी नहीं करूँगी प्रेम ।

उस गणित में अच्छे,
नीली आँखोंवाले लड़के से भी नहीं ।

या शायद मैं कर ही लूँ प्रेम
जब आटे का यह लोंदा नहीं हैं डरता जलने से
तो खून, हड्डियों और माँसपेशियों से बना मेरा हृदय
क्यों नहीं सह सकेगा आग प्रेम-वेम की ।

'''मूल पोलिश से अनुवाद : अम्बर रंजना पाण्डेय'''
</poem>
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