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|रचनाकार=सुरजीत पातर
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<poem>
जब बोलो तो
ध्यान रखो !
किसी के सम्मुख बोल रहे हो ।

ग़ैरहाज़िरों को भी हाज़िर समझो ।

याद रखो !
मरे और बिछड़े हुए भी
दूर कहीं सुनते हैं हमें ।

दूर कहीं सुनते हैं वे भी
जो बनेंगे हमारे वारिस ।

जब बोलो
तो याद रखो !

यह सब किसी गुप्त ग्रन्थ में लिखा होगा

जब बोलो
तो केवल कण्ठ से ही न बोलो
दिल से बोलो ।

और जब लगे
कि होंठों से हृदय का रिश्ता टूट गया है,
तो मौन हो जाओ ।
</poem>
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