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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब बोलो तो
ध्यान रखो !
किसी के सम्मुख बोल रहे हो ।
ग़ैरहाज़िरों को भी हाज़िर समझो ।
याद रखो !
मरे और बिछड़े हुए भी
दूर कहीं सुनते हैं हमें ।
दूर कहीं सुनते हैं वे भी
जो बनेंगे हमारे वारिस ।
जब बोलो
तो याद रखो !
यह सब किसी गुप्त ग्रन्थ में लिखा होगा
जब बोलो
तो केवल कण्ठ से ही न बोलो
दिल से बोलो ।
और जब लगे
कि होंठों से हृदय का रिश्ता टूट गया है,
तो मौन हो जाओ ।
</poem>
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|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=योजना रावत
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जब बोलो तो
ध्यान रखो !
किसी के सम्मुख बोल रहे हो ।
ग़ैरहाज़िरों को भी हाज़िर समझो ।
याद रखो !
मरे और बिछड़े हुए भी
दूर कहीं सुनते हैं हमें ।
दूर कहीं सुनते हैं वे भी
जो बनेंगे हमारे वारिस ।
जब बोलो
तो याद रखो !
यह सब किसी गुप्त ग्रन्थ में लिखा होगा
जब बोलो
तो केवल कण्ठ से ही न बोलो
दिल से बोलो ।
और जब लगे
कि होंठों से हृदय का रिश्ता टूट गया है,
तो मौन हो जाओ ।
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