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|रचनाकार=सुरजीत पातर
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<poem>
मेरी एक अरज़ है
अब इस घर में अब कोई कुफ़्र न तोलो ।

कोई फीका या रूखा बोल न बोलो
मुँह से कोई कड़वा सुखन न निकालो
न कहे कोई ऊँची - नीची बात
कि अब यह घर बहुत पावन - पवित्र है
कि अब इस घर में पल रहे हैं मेरे बेटे व बेटियाँ ।

मेरे घर में नया युग बन रहा है ।
आने वाले दिन ताना तन रहे हैं
मेरे घर में नए दिन बन रहे हैं ।
</poem>
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