भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मेंढकजी गायक बन बैठे
इसीलिए है मन में ऐंठे,
लगा फुलाँचे हिसी हिरनी जैसी
सबके मन को भाए बादल।
'''-0-14-5-81 ,अमर उजाला 6-9-81'''
</poem>