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कवि का दिल / राजेश अरोड़ा

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थके, हारे,भूले लोगों का अस्पताल है
कवि का दिल।
रोता है उन ज़ख़्मों के दर्दो से
जो धरती के दूसरे भाग में
किसी अनदेखे आदमी के हिस्से आते हैं
उम्र भर करता है प्राश्चित
उन भूलों की
जो उसने कभी की ही नहीं
अंतहीन संवेदना का सागर है
कवि का दिल !

जब भी बिछुड़ते प्रेमी
घना होता है युद्ध का उन्माद
हर नर्क के विरुद्ध
स्वर्ग का एक गीत है
कवि का दिल
कितनी विचित्र बातो का सहज विकल्प है
कवि का दिल
</poem>
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