भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवि / राजेश अरोड़ा

1,302 bytes added, 15:08, 27 जुलाई 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश अरोड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश अरोड़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं नहीं जानता
उन शब्दों के अर्थ
जो दिए हैं मैंने गीतों को
लेकिन लगता है
शब्द वातायन है कोई
जिनसे पड़ती है
मेरे माथे पर
सूरज की एक किरण
गेहूँ की हरी बाली
अभी मेरे माथे में सुनहरी होगी
मैं जानना भी नहीं चाहता
उन शब्दों के अर्थ
जो दिए हैं मैंने गीतों को
इस यज्ञ कुण्ड में
हवि की तरह
अनगिनत साधु जनों के साथ
शांत करने को
आदमी की कुण्डली में बैठे
अनिष्टकारी ग्रहों को।
अनन्त वर्षों से चलते
इस यज्ञ को जारी रखने का
छोटा-सा प्रयास भर हैं मेरे शब्द।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,500
edits