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{{KKRachna
|रचनाकार=महेश कुमार केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक दिन शाँति के
ऊपर जो बहुत गहरे
बर्फ जमी है
वो
जमी बर्फ
पिघल जायेगी !
युद्ध घुटनों के बल
मुड़ा होगा !
युद्ध से पुते
सारे चेहरों पर
दु:ख की जमी गर्द
झड़ चुकी होगी !
एक दिन गैर-बराबरी
खत्म हो जायेगी
और
सारे आण्विक हथियारों
पर बर्फ जम जायेगी
या वह किसी खोह में बिला
जायेंगें
तब उन्हीं हथियारों को
पिघलाकर
हल बनाई जायेगी
फिर से हँसुआ बनेगा
और उससे काटी जायेंगीं
फसलें
तब किसान युद्ध के बारे में
नहीं सोचेंगे।
माएँ , नहीं सोचेंगीं
बेटे के सही सलामती
के साथ युद्ध से लौटने
की बात
तब एक आश्वसति
होगी
लोगों के दिलों में
तब युद्ध के बाद बच्चे बाहें
फैलाये अपने पिता को
अपनी बाजूओं में
समेट लेंगें
एक दिन बारूद वाली ज़मीन पर
फसलें लहलहायेंगी ।
तब बहुत शाँति होगी !
देख , लेना वह समय एक दिन ज़रूर
आयेगा !
</poem>
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|रचनाकार=महेश कुमार केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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एक दिन शाँति के
ऊपर जो बहुत गहरे
बर्फ जमी है
वो
जमी बर्फ
पिघल जायेगी !
युद्ध घुटनों के बल
मुड़ा होगा !
युद्ध से पुते
सारे चेहरों पर
दु:ख की जमी गर्द
झड़ चुकी होगी !
एक दिन गैर-बराबरी
खत्म हो जायेगी
और
सारे आण्विक हथियारों
पर बर्फ जम जायेगी
या वह किसी खोह में बिला
जायेंगें
तब उन्हीं हथियारों को
पिघलाकर
हल बनाई जायेगी
फिर से हँसुआ बनेगा
और उससे काटी जायेंगीं
फसलें
तब किसान युद्ध के बारे में
नहीं सोचेंगे।
माएँ , नहीं सोचेंगीं
बेटे के सही सलामती
के साथ युद्ध से लौटने
की बात
तब एक आश्वसति
होगी
लोगों के दिलों में
तब युद्ध के बाद बच्चे बाहें
फैलाये अपने पिता को
अपनी बाजूओं में
समेट लेंगें
एक दिन बारूद वाली ज़मीन पर
फसलें लहलहायेंगी ।
तब बहुत शाँति होगी !
देख , लेना वह समय एक दिन ज़रूर
आयेगा !
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