भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
"प्रेरणा तुम्हें अच्छी नहीं लगी
नीति तुम्हारा कुछ कर नहीं सकी
दिशा तुम्हें ही ढूँढती रही
प्रगति भी वहीं खड़ी थमी रही
तुम कहाँ खोई हो हिन्दी !
आसमान-सा तुम्हारा विस्तार
वसुधा-सा तुम्हारा प्यार
खिले फूलों-सी अभिव्यक्ति
शब्द-शब्द में भरी आसक्ति
क्यों त्याग दिया तुम्हें, तुम्हारे अपनों ने ही
स्वजन ही क्यों बने निर्मोही
तुम कहाँ खोई हो हिन्दी !
तलाश लो स्वयं को
अपनों में भरो अपने अहं को
देश में फैलाओ अपना प्रकाश
थमती धड़कनों में भरो ऊर्जा और साँस
छा जाओ भारत ही नहीं विश्व पर
मार्ग अपना बनाओ सुकर
विदेशी भाषाओं पर हम ना हों निर्भर
हिंदी, मेरी हिन्दी कुछ तो कर !"
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
"प्रेरणा तुम्हें अच्छी नहीं लगी
नीति तुम्हारा कुछ कर नहीं सकी
दिशा तुम्हें ही ढूँढती रही
प्रगति भी वहीं खड़ी थमी रही
तुम कहाँ खोई हो हिन्दी !
आसमान-सा तुम्हारा विस्तार
वसुधा-सा तुम्हारा प्यार
खिले फूलों-सी अभिव्यक्ति
शब्द-शब्द में भरी आसक्ति
क्यों त्याग दिया तुम्हें, तुम्हारे अपनों ने ही
स्वजन ही क्यों बने निर्मोही
तुम कहाँ खोई हो हिन्दी !
तलाश लो स्वयं को
अपनों में भरो अपने अहं को
देश में फैलाओ अपना प्रकाश
थमती धड़कनों में भरो ऊर्जा और साँस
छा जाओ भारत ही नहीं विश्व पर
मार्ग अपना बनाओ सुकर
विदेशी भाषाओं पर हम ना हों निर्भर
हिंदी, मेरी हिन्दी कुछ तो कर !"
</poem>