भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नई फ़सल / इंदुशेखर

2,210 bytes added, 22:28, 15 अगस्त 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धरती मैया की गोदी में
झूम रही है नई फ़सल !

कभी हवा का आँचल थामे
खेल रही है नई फ़सल
कभी आग-सी दोपहरी को
झेल रही है नई फ़सल

कभी पहाड़ों जैसे दुख को
फूँक गिराती नई फ़सल,
कभी दुखों को झेल,
घड़ी में उन्हें भुलाती हुई फ़सल

धरती के बेटों के मन में
घूम रही है नई फ़सल
धरती मैया की गोदी में
झूम रही है नई फ़सल !

तितली जैसी, सतरंगे
पंखों वाली है नई फ़सल
मिहनत के दीयों से जगमग
दीवाली है नई फ़सल,

जगभर की आँखों के सपनों
की लाली है नई फ़सल
मन की बनी मयूरी औ’
कोयल काली है नई फ़सल

चाँद उगा, हौले से उसको
चूम रही है नई फ़सल
धरती मैया की गोदी में
झूम रही है नई फ़सल !

खुरपी और कुदाली के सँग
खड़ी हुई है नई फ़सल
होरी की उँगलियाँ थामकर
बड़ी हुई है नई फ़सल

अभी स्वप्न में डूबी-डूबी
पड़ी हुई है नई फ़सल
कचिया के झुमर की अन्तिम
कड़ी हुई है नई फ़सल

घर में, आँगन में, ओठों पर
कहाँ नहीं है नई फ़सल
धरती मैया की गोदी में
झूम रही है नई फ़सल !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,379
edits