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{{KKRachna
|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=एक स्वप्न कथा / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध
|आगे=एक स्वप्न कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध
|सारणी=एक स्वप्न कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध
}}
::'''2'''<br><br>
सागर तट पथरीला<br>
किसी अन्य ग्रह-तल के विलक्षण स्थानों को<br>
अपार्थिव आकृति-सा<br>
इस मिनिट, उस सेकेण्ड<br>
::चमचमा उठता है,<br>
जब-जब वे स्फूर्ति-मुख मुझे देख<br>
::तमतमा उठते हैं<br><br>
काली उन लहरों को पकड़कर अँजलि में<br>
जब-जब मैं देखना चाहता हूँ--<br>
क्या हैं वे? कहाँ से आयी हैं?<br>
किस तरह निकली हैं<br>
उद्गम क्या, स्रोत क्या,<br>
उनका इतिहास क्या?<br>
काले समुन्दर की व्याख्या क्या, भाष्य क्या?<br>
कि इतने में, इतने में<br>
झलक-झलक उठती हैं<br>
जल-अन्तर में से ही कठोर मुख आकृतियाँ<br>
भयावने चेहरे कुछ, लहरों के नीचे से,<br>
चिलक-चिलक उठते हैं,<br>
मुझको अड़ाते हैं,<br>
बहावदार गुस्से में भौंहें चढ़ाते हैं।<br>
पहचान में आते-से, जान नहीं पाता हूँ,<br>
शनाख़्त न कर सकता।<br>
ख़याल यह आता है-<br>
शायद है;<br>
सागर की थाहों में महाद्वीप डूबे हों<br>
रहती हैं उनमें ये मनुष्य आकृतियाँ<br>
मुस्करा, लहरों में, उभरती रहती हैं।<br>
थरथरा उठता हूँ!<br>
सियाह वीरानी में लहराता आर-पार<br>
सागर यह कौन है ?<br><br>
{{KKRachna
|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
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|आगे=एक स्वप्न कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध
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}}
::'''2'''<br><br>
सागर तट पथरीला<br>
किसी अन्य ग्रह-तल के विलक्षण स्थानों को<br>
अपार्थिव आकृति-सा<br>
इस मिनिट, उस सेकेण्ड<br>
::चमचमा उठता है,<br>
जब-जब वे स्फूर्ति-मुख मुझे देख<br>
::तमतमा उठते हैं<br><br>
काली उन लहरों को पकड़कर अँजलि में<br>
जब-जब मैं देखना चाहता हूँ--<br>
क्या हैं वे? कहाँ से आयी हैं?<br>
किस तरह निकली हैं<br>
उद्गम क्या, स्रोत क्या,<br>
उनका इतिहास क्या?<br>
काले समुन्दर की व्याख्या क्या, भाष्य क्या?<br>
कि इतने में, इतने में<br>
झलक-झलक उठती हैं<br>
जल-अन्तर में से ही कठोर मुख आकृतियाँ<br>
भयावने चेहरे कुछ, लहरों के नीचे से,<br>
चिलक-चिलक उठते हैं,<br>
मुझको अड़ाते हैं,<br>
बहावदार गुस्से में भौंहें चढ़ाते हैं।<br>
पहचान में आते-से, जान नहीं पाता हूँ,<br>
शनाख़्त न कर सकता।<br>
ख़याल यह आता है-<br>
शायद है;<br>
सागर की थाहों में महाद्वीप डूबे हों<br>
रहती हैं उनमें ये मनुष्य आकृतियाँ<br>
मुस्करा, लहरों में, उभरती रहती हैं।<br>
थरथरा उठता हूँ!<br>
सियाह वीरानी में लहराता आर-पार<br>
सागर यह कौन है ?<br><br>