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|रचनाकार=सुरंगमा यादव
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मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
शिवजी भी आतुर आये श्री राम का दर्शन करने को।
ब्रह्मा जी तो मुग्ध देखते राम प्रभु की दिव्य छवि
नारद की चंचलता देखो रूप निहारे खड़ी-खड़ी
विष्णु जी भी देख खो गये खुद अपनी ही बाल छवि
शेष -शारदा शब्द न पाते प्रभु का वर्णन करने को
मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
बाल सुलभ मुसकान प्रभु की मन को मोहे घड़ी-घड़ी
लोल कपोलों की शोभा नित नव लगती और बढ़ी
भाग्य संवरते उसके जिस पर राम प्रभु की दृष्टि पड़ी
प्रभु चरणों में लीन हुआ मन जीवन पावन करने को
मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
</poem>
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मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
शिवजी भी आतुर आये श्री राम का दर्शन करने को।
ब्रह्मा जी तो मुग्ध देखते राम प्रभु की दिव्य छवि
नारद की चंचलता देखो रूप निहारे खड़ी-खड़ी
विष्णु जी भी देख खो गये खुद अपनी ही बाल छवि
शेष -शारदा शब्द न पाते प्रभु का वर्णन करने को
मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
बाल सुलभ मुसकान प्रभु की मन को मोहे घड़ी-घड़ी
लोल कपोलों की शोभा नित नव लगती और बढ़ी
भाग्य संवरते उसके जिस पर राम प्रभु की दृष्टि पड़ी
प्रभु चरणों में लीन हुआ मन जीवन पावन करने को
मचल रहा मन मचल रहा है प्रभु का दर्शन करने को।
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