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|रचनाकार=धिरज राई
|अनुवादक=सुमन पोखरेल
|संग्रह=
}}
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<poem>
जब जब तुम
मेरे बहुत ही नज़दीक से गुज़रती थी,
तुम्हारी चाल की बहाव के साथ
डोलता रहता था मेरा दिल ।
लेकिन, कभी भी न पूछा मैंने
चलने के उस सलीके से,
मुझ से आखेँ टकराने पे
चाल की लय भंग हो जाने का रहस्य ।
</poem>
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|अनुवादक=सुमन पोखरेल
|संग्रह=
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जब जब तुम
मेरे बहुत ही नज़दीक से गुज़रती थी,
तुम्हारी चाल की बहाव के साथ
डोलता रहता था मेरा दिल ।
लेकिन, कभी भी न पूछा मैंने
चलने के उस सलीके से,
मुझ से आखेँ टकराने पे
चाल की लय भंग हो जाने का रहस्य ।
</poem>