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Kavita Kosh से
एक नदी, दो-तीन देश, कुछ नारियाँ —
यह सब हैं मेरे पुराने पोशाकमेरी पुरानी पोशाकें, बहुत प्रिय थेथीं, अब शरीर मेंतंग हो कसने लगे लगी हैं, नहीं शोभते शोभतीं अब
तुम्हें दिया, नवीन किशोर, मन हो तो अंग लगाओ
या घृणा से फेंक दो दूर, जैसी मरज़ी तुम्हारी