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उम्र / दीपक शम्चू / सुमन पोखरेल

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<poem>
हवाओं का धकेलते-धकलते ले गए हुए
जवान बादलों की जैसी चंचलता को
पकडकर आँचल में रखना संभव नहीं होता, मालूम हुआ ।

किनारे को सहलाते हुए
समुद्र का संगीत सुनने के लिए निकले हुए यौवन को
आँखों के तालाब में कैद नहीं किया जा सकता, मालूम हुआ।

गुलाब को सजाकर गालों पर,
नज़र के रास्ते पर बुकी के फूल बिछाते हुए,
सीने में बुराँस के लाल फूल लेकर
यौवन की गलियों में भटकते हुए गुज़रा हुआ
मानो अभी-अभी की बात हो, ऐसा लग रहा है ।

पानी के बह जाने से स्रोत कभी नहीं सूखता, जिस तरह
लगता था कि यौवन कभी ख़त्म नहीं होगा, उसी तरह
हवा के उड़कर दूर जाने से समय कभी खत्म नहीं हो सकता, जिस तरह
लगता था कि जीवन कभी ख़त्म नहीं होगा उसी तरह ।

मैंने ऐसा कब सोचा था कि,
वे ही क्षण अतीत बन जाएँगें और
स्मृतियों में उलझकर रहे जाएगी उम्र ।
०००

०००

</poem>
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