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आलम ए अलविदा / विश्राम राठोड़

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मकबूल यह नहीं है कि हमारी ज़िन्दगी में कोई भी फ़रिश्ते बनके आये पर
शर्त हमारी बस यह रहेगी
जो भी आये बस हमें अलविदा ना कहके जा

यूं उम्र का तजुर्बा नासाज ना बन जाए
कुदरत के करिश्में में कोई भी इंतज़ार ना बन पाए
मकबूल यह नहीं है कि हमारी ज़िन्दगी में कोई भी फ़रिश्ते बनके आये पर
शर्त हमारी बस यह रहेगी
जो भी आये बस हमें अलविदा ना कहके जाए

सूरज का इंतज़ार हमें सदियों तक रहेगा
बस चांद की चांदनी कोई आंच ना आए
महोब्बत के ग़म हमें जूदा पसंद नहीं
दर्द अगर पलकों में बेशक नज़र आता हो
बस एक ही शर्त है उन पलकों से आंसू ना बह जाए
दर्द बेशक दिल में ज़रूर छुपा के रखना
बस हमारी पलकों इंतज़ार का आलम
नजर ना आए
मकबूल यह नहीं है कि हमारी ज़िन्दगी में कोई भी फ़रिश्ते बनके आये पर
शर्त हमारी बस यह रहेगी
जो भी आये बस हमें अलविदा ना कहके जाए
</poem>
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