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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
प्रेमी ने बाहें फैलाते हुए कहा -
सुनो सुनैना
मैं बाहर खड़ा हूँ
हाथों में
कुछ चंपा के फूल लिये हुए,
फूल जो तुम्हारी घुँघराली लटों पर
सजकर इतराना चाहते हैं,
फूल जो विश्वास दिलाना चाहते हैं-
कि प्रेम ऐसा भाव है,
जो अगाध है, अनंत है:
आओ इन फूलों को विश्वास दिलाओ
कि ये तुम्हारे पावन प्रेम के योग्य हैं।
-0-
</poem>
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प्रेमी ने बाहें फैलाते हुए कहा -
सुनो सुनैना
मैं बाहर खड़ा हूँ
हाथों में
कुछ चंपा के फूल लिये हुए,
फूल जो तुम्हारी घुँघराली लटों पर
सजकर इतराना चाहते हैं,
फूल जो विश्वास दिलाना चाहते हैं-
कि प्रेम ऐसा भाव है,
जो अगाध है, अनंत है:
आओ इन फूलों को विश्वास दिलाओ
कि ये तुम्हारे पावन प्रेम के योग्य हैं।
-0-
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