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Kavita Kosh से
डूबी हुई पृथ्वी
(पता नहीं किस अनहोनी की प्रतीक्षा में)
इस भीषण सड़ाँव सड़ाँध को चुपचाप सह रही हैमगर आपस में नफरत करते हुये हुए वे लोग
इस बात पर सहमत हैं कि
‘चुनाव’ ही सही इलाज है
क्योंकि बुरे और बुरे के बीच से
किसी हद तक ‘कम से कम बुरे को’ चुनते हुयेहुए
न उन्हें मलाल है, न भय है
न लाज है
दरअस्ल उन्हें एक मौका मिला है
और इसी बहाने
वे अपने पडो़सी पड़ोसी को पराजित कर रहे हैं
मैंने देखा कि हर तरफ
मूढ़ता की हरी-हरी घास लहरा रही है
चलो।
इससे पहले कि वे
इससे पहले कि वे नारों और इस्तहारों से
काले बाज़ार हों
अन्धा शिकार है।
तुम मेरी चिन्ता मत करो।
मैं हर वक्त वक़्त सिर्फ एक चेहरा नहीं हूँ
जहाँ वर्तमान
अपने शिकारी कुत्ते उतारता है
शायद अपने-आपको
शायद उस हमशक्ल को
(जिसने खुद ख़ुद को हिन्दुस्तान कहा था)
शायद उस दलाल को
मगर मुझे ठीक-ठीक याद नहीं है
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