भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
639 bytes added,
30 सितम्बर
और तुम्हारे मुखमण्डल पर गहराती जाती दिन पर दिन
जो विषाद की रेखाएँ थीं —
ह हाँ, उनको भी प्यार किया था; और प्रिये, फिर लाल सलाख़ों (किरणों) के सम्मुख थोड़ा - सा झुककरकुछ उदास हो जाना, फिर होंठों जी होंठों कहनाकैसा तो था प्यार; कर गया सूना जीवन कितनी जल्दी जाकर गिरिशिखरों के ऊपरतारों के समूह में उसनेछिपा लिया मुखमण्डल अपना !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader