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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्योति पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
छोटी यात्राओं के पथिक
प्रायः
छोटे पैरों और सीमित दृष्टि वाले होते हैं।
उनकी यात्रा अक्सर ख़ुद से ख़ुद पर
समाप्त हो जाती है।
उन्हें नहीं लगता
कि दुनिया बहुत बड़ी है।
वे जानते हैं
अपने रास्तों के मोड़।
आँखें मूँदे
घने कोहरे में भी
निकल पड़ते हैं अपने गंतव्य की ओर।
उनको नहीं मिलती
कोई बाधा,
रुकावट नहीं बनता कोई मौसम, पेड़ या पत्थर।
उनकी पोटली में
बँधा होता है
छोटी भूख का बीज
और प्यास का नन्हा सोता।
उन्हें दौड़ना नहीं आता,
साँस फूल आती है।
उनके चलने, रुक जाने में भी
रास्तों का रस है।
छोटी यात्राओं के पथिक
जेबों में ठौर लिए चलते हैं।
</poem>
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छोटी यात्राओं के पथिक
प्रायः
छोटे पैरों और सीमित दृष्टि वाले होते हैं।
उनकी यात्रा अक्सर ख़ुद से ख़ुद पर
समाप्त हो जाती है।
उन्हें नहीं लगता
कि दुनिया बहुत बड़ी है।
वे जानते हैं
अपने रास्तों के मोड़।
आँखें मूँदे
घने कोहरे में भी
निकल पड़ते हैं अपने गंतव्य की ओर।
उनको नहीं मिलती
कोई बाधा,
रुकावट नहीं बनता कोई मौसम, पेड़ या पत्थर।
उनकी पोटली में
बँधा होता है
छोटी भूख का बीज
और प्यास का नन्हा सोता।
उन्हें दौड़ना नहीं आता,
साँस फूल आती है।
उनके चलने, रुक जाने में भी
रास्तों का रस है।
छोटी यात्राओं के पथिक
जेबों में ठौर लिए चलते हैं।
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