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<poem>
तुमने मन चुना
मैंने मनमीत

सालों एक दूसरे को जानते समझते
लड़ते झगड़ते
अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते
हमने तय किया एक दूसरे का होना

तुमसे इन धुंधली आंखों को
नई रोशनी मिली
और जीवन को एक नई दिशा

तुम गूंजने लगे मेरे मन के ब्रह्मांड में
अनहद नाद की तरह
तब सारे स्वर ने मौन धारण कर
चुप्पी साधे तुम्हारी उपस्थिति महसूस की

तुमने समझाया
कैसे नीला आकाश प्रेम में अपना सम्पूर्ण वजूद
परिंदों को सौंपकर उन्हें मुक्त कर देता है
और वे परिंदे शाम होते ही
अपने अपने नीर में लौट आते हैं

तुमने कभी पिता कभी पति तो कभी दोस्त बनकर
मुझ बेतरतीब को संभाल लिया
तुम्हारे होने से
तुम्हारे साथ मैं भी इस अनन्त वितान में
अब नापने लगी हूँ अपना आसमान

तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी में आने के लिये
शुक्रिया साथी!

तुम सदा संग संग साथ रहना
तुम्हारा होना मेरा होना है
मेरे मनमीत!!
</poem>
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