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हे कृष्ण! / काजल भलोटिया

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<poem>
तुम प्रेम का तिलिस्म हो
पहले राधे को अपना बनाया
फिर मीरा को जोगन बनाया

सात फेरों का वचन ले
छला तुमने रुक्मणि को भी
की प्रेम से प्रेम निभाने में हर बार
असफल रहे तुम

हम मानवों की क्या बिसात कृष्ण
हम प्रेम करते हैं
और छले जाते हैं
तुम्हारी ही तरह
किसी छलिया से

जो अपने प्रेम की दिव्यता का अहसास दिला
हमें बेबस कर देता है
न हम जी ही पाते हैं
न मर पाते ही पाते हैं

सब समझते हुए की प्रेम
न तो शास्वत है
न अटूट
इसका अंत पीड़ के सिवा कुछ नहीं
फिर भी हम प्रेम में पड़ना चाहते हैं

हे कृष्ण!
माया रचित संसार में
माया का भ्रम ही फैलाये रखना
ताकि बार बार प्रेम में छले जाने के बाद भी
बची रहे अंनत काल तक
प्रेम और संवेदना!

की तुमने ही कहा है युगों पहले
गीता सार में
की संपूर्ण सृष्टि का आधार
केवल और केवल प्रेम है।
</poem>
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