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<poem>
कहुखनकेँ हमरा ई नै बुझबामे अबैये जे हम
जीवित छी वा मृत?
किएक त' हम भूत भऽ चुकल लोक सब संग
भरिदिन बतियाइत रहैत छी
स्वप्नमे सेहो ओ सब साधिकार अबैत छथि
हमर घाव पर हाथ दऽ पुछैत छथि हाल समाचार
नीक अधलाह बुझबैत छथि
हुनका संग हँसैत छी,बजैत छी, निःसंकोच कहि
मोनक भार हल्लुक करैत छी
हम आश्वस्त भऽ हुनका सबकेँ प्रणाम करैत छी आर अपन लेखनीमे जुटि जाइत छी

ताबत ध्यान जाइत अछि मृतवत जीवित लोक दिस
ओ गुम्मी लदने मौन छथि
जे नहि जानि कोना श्वासो लैत छथि
किएक त' हुनक हृदय स्पंदनहीन बुझाइए
संवेदनाक जेना हुनका लग लेशो नहि बचल
हम कतेको प्रश्न पुछैत छी, ओम्हरसँ कोनो प्रत्युत्तर नै अबैये

हम डरा जाइत छी
के जीवित,के मृत किछु बुझबामे नहि आबि रहल
आगिक धधड़ाकेँ हम हाथसँ छूबाक प्रयत्न करैत छी
हमर उंगरी मात्र तापक बोध करैये
ओतय जे देखा रहल ओ नहि अछि
आर जे नहि अछि से देखा रहल
ई शंका मात्र की हमरा भऽ रहल ?

हमर अपन अवाज हमरा लग घुरिकेँ आबि जाइए
हम जेना शून्यमे पहुँच गेल छी
जीवन मृत्युक एतय कोनो भेद नै
एतय मृत केर आँखिमे हमरा जीजिविषा देखा रहल
आ जीवित केर आँखिमे दूर तक पसरल अन्हार
हम मोनक ताबूत खोलि ओहिमे सुति रहैत छी
हाथमे मुदा एखनो क़लम अछि
</poem>
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