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सुआसिन / दीपा मिश्रा

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आंँखिमे भरल नोर संग अन्चिनहार होइत अंगना दिस तकैत ठाढ़ छथि सुआसिन
जाहि दिन बाबा बुच्ची नै कही सुआसिन कहि सोर पाड़लनि बूझि गेलीह
आब किछु अपन नै रहल
ओछाओल पटिया पर बैसिके चुपेचाप पाएर अंगोरबा लैत छथि ...

नैहरक माटि पर पहुँचैते ममत्व संग देखैत छथि चारू कात
बाड़ीक लताम नेबोक सुआद धीरे-धीरे बिसराइए गेलैन ओहिना जेना बेटी धी के बिसरा दैत छै नैहरक लोक
काज करतेबते बेगरता रहला पर मात्र होइत छै लिआओन...

नहि त' के परिछत सीरी?
के उठाओत कुम्हरमक कोहा?
के भूजत लाबा?
के पारत अरिपन? के देत हकार आर के परिछति सेनुर ?
दौड़ि दौड़ि काज सम्हारैत अंगनाकेँ फेर अपन मान' लगैत छथि
सुआसिन...

ताधरि गोसाउन घरमे सूपमे राखल धान मोन पाड़ि दैत छैन
जे जल्दिए विदा हेबाक तैं मोह नै करू बेसी
बहिनाक बाड़ीसँ आनिकेँ रोपल तुइतक खुट्टी आब जे बड़का छतनार भ' गेल कचौटैत कहैत छनि
जे जाधरि हम फरब अहाँ चलि गेल रहब...

कहाँ कहिओ खाइत छथि अपन रोपल आम आ कटहर
संतोष एतबी जे किओ खाइए
सोचैत सुआसिन सब मोह त्यागि दैत छथि
अपन हरायल कोठरीकेँ हौंसतैथ छथि ओहि स्थान सबकेँ सेहो जतय नेनपनक स्मृति नुकाएल आइओ चोरा नुक्की खेला रहल

सब छोड़िकेँ मोनहि मोन गाम केँ प्रणाम क'विदा भ' जाइत छथि सुआसिन
कुलदेवीकेँ गोहार करैत
एहि अंगनाकेँ एतुका लोककेँ समृद्ध रखबै
समांग देबै
झलफलायल होइत घरकेँ बाटसँ जाधरि ताकि सकैत छथि,देखैत छथि
दू बुन्न नोरसँ ओकरा पैर छुबि विदा भ' जाइत छथि
नहि जानि घुरिके फेर एतय एबो करब वा नहि!
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