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अजबारल / दीपा मिश्रा

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<poem>
हम दुआरि पर ठाढ़ छी
भनसाघरमे बुआसिन
बरतन सभक बचल खेनाइकेँ
अजबारिके एकटा पैघ अढ़ियामे
सांठि रहल छथि
हमरा भीतर जाएब मना अछि
बहरायल भनसाक बरतन
हम मांजिके राखि दैत छियैन
ओकरा एक पानि धो फेर भनसा करथिन
ओना ओहिसँ हमरा कोनो मतलब नै छै
हमरा ओहि अढ़ियामे
अपन पांचों बच्चाक आंत देखा रहल
हमरा जल्दीसँ काज कऽ
टोल जएबाक अछि
हम सब भगवानक अजबारल लोक छी
</poem>
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