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मंजू / दीपा मिश्रा

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पोखरिक पुरबिया महार पर राखल
कुर्सी पर बैसि हम जखैन मास्टर साहेबक स्कूलमे भेटल होमवर्क करैत रही
पोखरिक उतरबरिया महार पर बैसिके हमर बालसखी मंजू हमर घरक आइंठ बरतन मँजैत छल

एम्हरसँ ओकरा इसारा करियै जे छोड़ ओ काज आ देख
ओ दौड़ि आबे हाथ पखारिके का आँखि फाड़िके देखैत छल पोथीमे छपल चित्र सब
किएक त'ओ आखर त' बुझैत नै छल
ओकरा पढ़बाक बड सेहेन्ता छलै

हम सगर्व ओकरा सुनबियै पढ़िके कथा कविता
ओ कहुखन ध्यानसँ कहुखन उचाट मोने सुनैत छल बात
काज नहि भेलासँ ओकरो दाइ बिगड़ै आ हमरो दादी बिगड़ैत छलखिन

फेरो हम पढ़बा लेल शहर चलि गेलौं
एक बरखक बाद जखैन छुट्टीमे घुरिके गाम एलौं
पोखरिक उतरबरिया महार पर ललका साड़ी पहिरने
भरि माथ सेनुर,हाथमे लहठी पहिरने मंजू बरतन मंजैत छल

हम अबाज देलियै ओ लजा गेल
दौड़िके नै आएल
साँझखन भेट भेल त' ओ लाजे कठौत भेल छल ,हँसिके भागि गेल
दोसर दिन अपन सासुरक बात सब कहलक
चानीक हाथक चूड़ी देखौलक
देखिके नीके लागल मुदा पुछबाक छल'एतेक जल्दी किएक ब्याह केलैं?'

पढ़ाइमे रमि गेलौं मंजू बिसरा गेल
दू बरखक बाद गाम गेलौं
पोखरि कात टहलैत रहौं त' मोन पड़ल मंजू
दादीसँ पुछलियैन ,दुखी मोने कहलैन
'ओ त'नहि रहल!'
'की भेलै? कोना?'
'बच्चा होए काल कष्ट भेलै,न बच्चा ने छौड़ी बचलै...'
धीरे-धीरे गामक बहुत रास मंजू एहिना मरैत गेल

आइओ गाममे पोखरि महार पर कोनो ने कोनो मंजू बरतन मंजैये
बियाह क' सासुर जाइए आ फेर
कहिओ घुरिके नै अबैये
किछु कहाँ बदलल
हमरे सभक पढ़ने की भेल कौन काज एलियै ककरो?
कोन परिवर्तन आनि सकलौं?

बरतन खसबाक अवाजसँ ध्यान टूटल
"माफ करना दीदी प्लेट हाथ से छूट गया
आज ज़रा जल्दी है,बेटी का एडमिशन कराने ले जाना
मैं तो नहीं पढ़ पाई,यह पढ़ ले"
बगलमे ठाढ़ अपन तीन सालक बेटीके देखबैत कौशल्या बाजल
लागल मंजू त' नै घुरि आएल!

हमर हाथ ओहि बच्चाक माथ पर चलि गेल
आँखिक कोरसँ दू ठोप नोर चुबि गेल
आब आरो नै ,गामे गाम जाके ताकब मंजूके
जाधरि सबटा मंजूक हाथमे क़लम नहि धरायब
अपन सखा मंजूसँ हम आंँखि कोना मिलायब
समय अछि कम आ रस्ता लंबा
मीलक पाथर के उखारि हम कांखतर दबा लैत छी
जखैन चलबाके अछि त' एकर आब कौन काज!
</poem>
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