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आँखिमे भविष्यक स्वप्न,प्रेमक नव संसार बसेबाक धुनमे बहैत चलि जाइत छल नदी
विश्वासघातक पाथरसँ टकराइत जखैन चोट लागल त' छटपटाइत जागल
निरीह भावें चारूकात तकैत रहल
ओ प्रेम रहै वा धोखा
नहि बुझि सकल शिवक दुलरूआ बम्भुलिया
ओ बतहिया त' अपनामे मगन
अल्हड़, अलमस्त लहरिक धुन संग
गबैत जा रहल,पुरबाक झोंक संग गरजोरि बन्हने
छल प्रपंचक नामो कहाँ कहिओ सुनने रहे
पिताक राखल परीक्षा प्रेमीकेँ स्वत: समक्ष आनि देलक
अनने छलाह सोनभद्र जहिया गुलबकावलीक दिव्य पुष्प
मोनसँ अपनाकेँ समर्पित क' देने रेवा हुनक संग
विवाहक प्रतीक्षामे उंगरी पर दिन गिनैत
बीता रहल छल समय
सुन्दर शान्त पनिसोखा सन सोन्हगर प्रेमक मध्य कहिया ओहन अन्हरिया राति आबि गेल
पतो नै चलल ओकरा
ठनका सन बजरल दासी जुहिला
ओकर जीवनमे
आ सब छिन्न-भिन्न भ' गेल
टूटैत गेल मनुहारक एक एक टा तार
आँखिक कोर नोरसँ भीजैत गेल
मसुआ गेल मोन, ज़ोर लगाकेँ फूँकि देलक प्रेमक ओहि इजोतकेँ जे हृदयकेँ बारने प्रियतमक बाट जोहैत छल
नेहक उन्मादमे जकरा संग दिवास्वप्नमे डूबल
संग चलबाक आस लगौने बहैत जा रहल
ओ त' ओतहि ठमकि गेल
नहि इच्छा भेलै ओकरा आब आगाँ बढ़बाक
अपना आपकेँ रोकबाक सामर्थ्य सबमे कहाँ होइत छै
प्रेममे छल की मात्र मनुष्य लेल दुखदाइ होइए?
चीत्कार पारैत कानि उठल नदी
चिर कुमारि रहबाक प्रतीज्ञाक संग नर्मदा
अपनाकेँ समेटने बहय लागल विपरीत मार्ग पर पच्छिम दिसामे
जेम्हर कोनो नदी नहि बहैत छल
ओ दूरसँ दूर चल जाए चाहैत छल
सोनभद्रसँ,
किएक त' तीत अतीत आब मात्र पीड़ा दैत रहै
अपन स्वाभिमानकेँ सम्हारैत
पछिला सब दुःख दर्द बिसरा
बाँटय लागल ओ सब किछु अपन दुनू तट पर बसनिहार लोक सबकेँ भरिछाक
ओ बुझि गेल छल
डाहक आगिमे जरबासँ नीक होइए
अपनाकेँ जगजियार करब
नदी अपन शोककेँ अपनहिमे समेटि लेलक
ओहिना जेना प्रेमीक देल छलकेँ
अपन भीतर समेटने लोक जीवन बिता दैये
गर्भमे भले कतबो सन्ताप रहै मुख पर स्मित हास्यक आवरण ओढ़ने रहैये
'नमो नर्मदायै निजानन्ददायै, नम: शर्मदायै शमाधर्पिकायै। नमो वर्मदायै वराभीतिरायै, नमो हर्म्यदायै हरं दर्शिकायै॥'
पंडितक मंत्रोच्चार आरती संग गूंजि रहल
सुमरनी,रमटेरा,दिवारी,मान,राई भिलाली, ददरिया, बंबुलिया कतेको नदी गीत गाबि लोक सब
नदीकेँ हाथ जोड़ि रहल
बम्भुलिया सब किछु देखैये आ कल कल हँसैत बहैत जा रहल
मानिनी,गर्विणी सन
हमरा मोन होइए ओकरा छातीसँ लगा नेह करबाक
सभ स्त्री मात्रक व्यथा कथा एकहि होइए
चाहिओ के ओ कहिओ ककरो पाथर कहाँ बनौलक
ताबत जलक तेज धार हमरा सिक्त क' जाइए
हमर नदीक दुःख,हमर नदीक सुख
सब एक रंग मिज्झर भ' जाइए
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आँखिमे भविष्यक स्वप्न,प्रेमक नव संसार बसेबाक धुनमे बहैत चलि जाइत छल नदी
विश्वासघातक पाथरसँ टकराइत जखैन चोट लागल त' छटपटाइत जागल
निरीह भावें चारूकात तकैत रहल
ओ प्रेम रहै वा धोखा
नहि बुझि सकल शिवक दुलरूआ बम्भुलिया
ओ बतहिया त' अपनामे मगन
अल्हड़, अलमस्त लहरिक धुन संग
गबैत जा रहल,पुरबाक झोंक संग गरजोरि बन्हने
छल प्रपंचक नामो कहाँ कहिओ सुनने रहे
पिताक राखल परीक्षा प्रेमीकेँ स्वत: समक्ष आनि देलक
अनने छलाह सोनभद्र जहिया गुलबकावलीक दिव्य पुष्प
मोनसँ अपनाकेँ समर्पित क' देने रेवा हुनक संग
विवाहक प्रतीक्षामे उंगरी पर दिन गिनैत
बीता रहल छल समय
सुन्दर शान्त पनिसोखा सन सोन्हगर प्रेमक मध्य कहिया ओहन अन्हरिया राति आबि गेल
पतो नै चलल ओकरा
ठनका सन बजरल दासी जुहिला
ओकर जीवनमे
आ सब छिन्न-भिन्न भ' गेल
टूटैत गेल मनुहारक एक एक टा तार
आँखिक कोर नोरसँ भीजैत गेल
मसुआ गेल मोन, ज़ोर लगाकेँ फूँकि देलक प्रेमक ओहि इजोतकेँ जे हृदयकेँ बारने प्रियतमक बाट जोहैत छल
नेहक उन्मादमे जकरा संग दिवास्वप्नमे डूबल
संग चलबाक आस लगौने बहैत जा रहल
ओ त' ओतहि ठमकि गेल
नहि इच्छा भेलै ओकरा आब आगाँ बढ़बाक
अपना आपकेँ रोकबाक सामर्थ्य सबमे कहाँ होइत छै
प्रेममे छल की मात्र मनुष्य लेल दुखदाइ होइए?
चीत्कार पारैत कानि उठल नदी
चिर कुमारि रहबाक प्रतीज्ञाक संग नर्मदा
अपनाकेँ समेटने बहय लागल विपरीत मार्ग पर पच्छिम दिसामे
जेम्हर कोनो नदी नहि बहैत छल
ओ दूरसँ दूर चल जाए चाहैत छल
सोनभद्रसँ,
किएक त' तीत अतीत आब मात्र पीड़ा दैत रहै
अपन स्वाभिमानकेँ सम्हारैत
पछिला सब दुःख दर्द बिसरा
बाँटय लागल ओ सब किछु अपन दुनू तट पर बसनिहार लोक सबकेँ भरिछाक
ओ बुझि गेल छल
डाहक आगिमे जरबासँ नीक होइए
अपनाकेँ जगजियार करब
नदी अपन शोककेँ अपनहिमे समेटि लेलक
ओहिना जेना प्रेमीक देल छलकेँ
अपन भीतर समेटने लोक जीवन बिता दैये
गर्भमे भले कतबो सन्ताप रहै मुख पर स्मित हास्यक आवरण ओढ़ने रहैये
'नमो नर्मदायै निजानन्ददायै, नम: शर्मदायै शमाधर्पिकायै। नमो वर्मदायै वराभीतिरायै, नमो हर्म्यदायै हरं दर्शिकायै॥'
पंडितक मंत्रोच्चार आरती संग गूंजि रहल
सुमरनी,रमटेरा,दिवारी,मान,राई भिलाली, ददरिया, बंबुलिया कतेको नदी गीत गाबि लोक सब
नदीकेँ हाथ जोड़ि रहल
बम्भुलिया सब किछु देखैये आ कल कल हँसैत बहैत जा रहल
मानिनी,गर्विणी सन
हमरा मोन होइए ओकरा छातीसँ लगा नेह करबाक
सभ स्त्री मात्रक व्यथा कथा एकहि होइए
चाहिओ के ओ कहिओ ककरो पाथर कहाँ बनौलक
ताबत जलक तेज धार हमरा सिक्त क' जाइए
हमर नदीक दुःख,हमर नदीक सुख
सब एक रंग मिज्झर भ' जाइए
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