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<poem>
प्रेमक नदीमे नाव पर बैसल
देखाएल छलीह हमरा एक दिन अमृता
हम हुनक चारूकात तकलौं
मुदा इमरोज़ कतहु नहि छलाह

अपना दिस टकटकी लगा तकैत देखि
अमृता हमरासँ पुछलैन
"की अछि मोनमे ? जे किछु अछि से पूछि लिए
बेसी बातक संग्रह अपना भीतर क' राखब बतहपनी कहाओल जाइए"

"अहाँ असकर किएक छी? प्रीतम सिंह,इमरोज,साहिर ई सब कतय गेलैथ?
किओ त' संग अहाँक रहितैथ?"

अमृता दूर नदीक कछार दिस इशारा केलैन
ओतय थोड़ेक पुरुष बैसिके तास खेला रहल छल
"ओ देखैत छी ने? भीड़ पुरुखक?"
हम कहलियैन, "हँ
बड लोक छै ओतय
सब हँसि बाजि,खा पी रहल,
तास ख़ला रहल"

"बूझल अछि ओ एतेक प्रसन्न किएक अछि?"
हम नै में मुड़ी हिलेलौं
अमृता कहलैन,"ओ सब किछुए काल पूर्व एहि नदीक तट पर एकटा स्त्रीकेँ मृत देहकेँ डाहिके बैसल उत्सव मना रहल अछि"

हमर देह सिहरी गेल
"आब बुझलौं हम असकर किएक छी?"
कहैत अमृता हमर माथ पर हाथ राखि
कतौ बिला गेलीह
</poem>
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