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{{KKRachna
|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}
<poem>
परेशान और तरबतर मेरे हाथ
घायल हुए
पहाड़ों, घाटियों और मैदानों के आलिंगन की कोशिश में
और जिस समुद्र से मुझे प्यार था
वह मुझे बार-बार डुबाता रहा
प्रेमी की यह देह एक लाश बन चुकी है
पानी पर उतराती हुई
परेशान और तरबतर
मेरी लाश भी
अपनी बाँहों को फैलाए हुए
मरी जा रही है
उस समुद्र को गले लगाने के लिए
जिसने डुबाया है उसे ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>
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|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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परेशान और तरबतर मेरे हाथ
घायल हुए
पहाड़ों, घाटियों और मैदानों के आलिंगन की कोशिश में
और जिस समुद्र से मुझे प्यार था
वह मुझे बार-बार डुबाता रहा
प्रेमी की यह देह एक लाश बन चुकी है
पानी पर उतराती हुई
परेशान और तरबतर
मेरी लाश भी
अपनी बाँहों को फैलाए हुए
मरी जा रही है
उस समुद्र को गले लगाने के लिए
जिसने डुबाया है उसे ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
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