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माँ का उपहार / कविता भट्ट

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और अपनी भावी पीढ़ियों को क्या उपहार देंगे !!''
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मोहि दयौ मैया तेरौ
सिगतैं अमोलिकि उपहार
जो कबहुँ नाहिं ह्वै पायौ मेरौ
कछुक दिननि के काजैं ई भलैं
मोहि जानि परौ
जे सिग मोरौ ई अहै
अहै ना अचरज भरौ
मोरौ न ह्वैकैं ऊ मोरौ ई हत
मोहि जाई नाईं भ्यासत
मोरे प्यौसारे के खेरे के
कछू सिढ़ीदार खेत
मैया जे खेत-साखी देत
तो अरु मोरे साझे संघर्ष के
ऐतिहासिक अभिलेख हत जे
पहाड़ी महरिया के पसीना के
जो पसीना नाहिं, लहू हुतो।
जिनि खेतनि निरखौ हमकौं ओ
रोवत-हँसत, खिलखिलात
बाजूबंद-माँगुळ गुनगुनात
घसियारी गीत गात
जब ऊ बाधा कोऊ
भई पहाड़—सी भारी
जब ऊ घिरे दोऊ
काऊ अवसाद मैं
मोइ अरु तोइ सँभारौ जिनि खेतनि नैं
हम जिनिकी गोदी में मूँड़ धरि
घंटन लौं नैननि मोचत हुते
काऊ देवी समसरि
सहरायौ, मल्हायौ, समुझायौ
हमहिं जिनि खेतनि की माटी नैं
कि जीबौ उठनियाँ चढ़नियाँ कौ भलैं
पै पहाड़ी महरि कौ जीबौ
काऊ तपसिन कै ऋषिका कौ
कै काऊ देवी कौ
फिरि जनमिबौ / औतार लैबौ होत
यातैं तुव सिग की नाईं नाहिं
औरैं, अजगुत हौ।
जब ऊ खेत की माटी नैं
हमहिं जे कहि धीर बँधायौ
हम सुबकत सुसुकत
पुनि जीवन की मुख्य धारा में
गए बहुरि,
हमनैं संघर्षनि
अपुनौ धरम अरु करम बनाइकैं
जीबौ सीखौ, अरु हम उदाहरण गए बनि
मान्स बखानी–
महरि पहाड़ की
देवी अहै, अहै तपसिनि
अहै सरब शक्तिशालिनि
नंदा भवानी।
पै मैया आजु मोरौ जिय
बहोरि बिचलौ
टिघिरौ अहै निरौ दुखी अहै
जे खेत जो हमहिं धीर बँधात हुते
जिनहिं सिग भुवन कौ सुनाइ दूख
हम आप निवेरौ पात हुते
जिनि खेतनि के बीठे, गाड़-गदेरे
कूलें, भीमल खड़ीक की भाँती औरउ रूख
जिनिके छोर के हार
सुनी हत–
काऊ दबंग माफ़िया ने बिनपै जमायौ अधिकार
सुनी हमारे दिल्ली मैं बसिबे पाछैं
नकसा बदलिकैं
कछू बहरूपियन नैं
थोरी कौड़िनि के काजैं
हमारे जिनि खेतनि कौं
सौंपि दयौ अहै
माफिया के हाथनि मैं।
 
अब तुम ई बताउ मैया
हम अपुनौ निज अवसाद काकौं सुनैंहैं?
अरु अपुनी भावी पीढ़िनि कौं का उपहार देंहैं!
 
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