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[[Category: ताँका]]
<poem>
164
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
265
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
366
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-