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{{KKRachna
|रचनाकार=नरेन्द्र जैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
यहाँ से एक रास्ता कहीं जाता तो है
वैसे यहाँ से कोई भी रास्ता
कहीं नहीं जाता
रास्ते की कोई परिकल्पना
यहाँ के भूगोल में दर्ज नहीं है
दरअसल आप जहाँ खड़े हैं
वह भी कोई रास्ता नुक्कड़ चौराहा नहीं है
पगडण्डी भी कोई नहीं है
आप कहाँ जाएँगे इस अन्धकार भरे मुल्क में ?
दिल्ली उस तरफ़ भी नहीं है
जहाँ आप देख रहे हैं
दिल्ली उस तरफ़ भी नहीं है
जहाँ नज़र जाती ही नहीं है
वैसे आप दिल्ली
जाना ही क्यों चाहते हैं?
ये मुग़लसराय है
यहीं उतर जाइए ।
</poem>
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यहाँ से एक रास्ता कहीं जाता तो है
वैसे यहाँ से कोई भी रास्ता
कहीं नहीं जाता
रास्ते की कोई परिकल्पना
यहाँ के भूगोल में दर्ज नहीं है
दरअसल आप जहाँ खड़े हैं
वह भी कोई रास्ता नुक्कड़ चौराहा नहीं है
पगडण्डी भी कोई नहीं है
आप कहाँ जाएँगे इस अन्धकार भरे मुल्क में ?
दिल्ली उस तरफ़ भी नहीं है
जहाँ आप देख रहे हैं
दिल्ली उस तरफ़ भी नहीं है
जहाँ नज़र जाती ही नहीं है
वैसे आप दिल्ली
जाना ही क्यों चाहते हैं?
ये मुग़लसराय है
यहीं उतर जाइए ।
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