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छन रही है धूप / गरिमा सक्सेना

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<poem>
पत्तियों की
छन्नियों से
छन रही है धूप
दिख रहा
पगडंडियों का
अब सुनहरा रूप

सूर्य बनने को
चली हैं
शावकों की टोलियाँ
स्वप्न आँखों में
सजाये
तोतली-सी बोलियाँ

गढ़ रही हैं
नवल कल का
पुस्तकें प्रारूप

जा रहीं
अल्हड़ गगरियाँ
खिलखिलाने घाट पर
स्वर्ण
मिट्टी को बनाने
कृषक निकले बाट पर

चाहते
सुख-दुख फटकना
आँख के दो सूप

मंदिरों में
बज रही हैं
आस्था की घंटियाँ
रोटियों को
थाप देतीं
खनखनाती चूड़ियाँ

लग रही है
भोर मनहर
गीत का प्रतिरूप
</poem>
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