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|संग्रह=कोशिशों के पुल
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<poem>
हर तरफ़ दिखता ग़लत पर
काग़ज़ों में सब सही है

ग्राफ़ में सब ग्रीनलाइन
निम्न पिसता औसतों में
दौर है विज्ञापनों का
है सियासत राहतों में

खो रहा बैलेंस लेकिन
शीट में बैलेंस है सब
चल रहा खाता-बही है

कब रजिस्टर में हुईं अंकित
व्यथाओं की कथाएँ
कौन आख़िर झेलता फिर
ये निरंकुश आपदाएँ

एकतरफ़ा बैठकों में चल
रहीं चर्चा बहुत सी
व्यर्थ की जो बतकही है

काग़ज़ों औ’ फाइलों ने
मूँद ली हैं आँख अपनी
क़लम गूँगी, प्रश्न गूँगे,
उत्तरों की मौन कथनी

जो दिखाता है निदेशक
देख लो वैसा सनीमा
देश में चलता यही है
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