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16:12, 24 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=कोशिशों के पुल
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<poem>
गृहयुद्धों से
धर्मयुद्ध तक
हार रहा उजियारा
मँडरा रहे
ड्रोन शहरों पर
आहत सभी दिशाएँ
चाह रहे वे
अंगारे को
हम ओढ़ें, सो जाएँ
चारों ओर
दिखाई देता
बस विक्षिप्त नज़ारा
बंद बैरकों में
ज़ख्मी हैं
मानवता के मानक
धू-धू कर
जलती इमारतें
दिखते दृश्य भयानक
नग्न सभ्यता
की आँखों में
पोषित है अंगारा
शांति-न्याय
विश्वास, अस्मिता
आँखों में दफ़नाकर
हथियारों की
चाँदी काटें
महाशक्तियों के स्वर
महायुद्ध की
तैयारी में
डूबा कुनबा सारा
</poem>