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<poem>
पार करनी है हमें
विद्रूपताओं की नदी
हम नये बदलाव का
संकल्प ले
आगे बढ़ें
कोशिशों के पुल गढ़ें

एक से जब एक मिल
ग्यारह बनें
तो बात हो
दूर हो अँधियार
नूतन भोर की
शुरुआत हो

अब समय है
हम प्रगति की
सीढ़ियाँ मिलकर चढ़ें
कोशिशों के पुल गढ़ें

क्या मिला
यह छोड़,
बोयें आज हम कल के लिए
कुछ करें ऐसा कि
फिर से
खिलखिलाएँ हाशिए

कंटकों का
दोष क्यों
केवल बबूलों पर मढ़ें
कोशिशों के पुल गढ़ें

कबतलक
हम सिर्फ़ बाँचेंगे
विमर्शों की कथा
एक हो पाई
नहीं क्यों
आपकी-मेरी व्यथा

सोच कुछ ऐसा
चलो हम
एक-दूजे को पढ़ें
कोशिशों के पुल गढ़ें
</poem>
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