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कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आएआए।मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न<ref>कवित्व</ref> तक आएआए।
जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे,तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आएआए।
कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर<ref>साँचा</ref> से,कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आएआए।
जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए,मेरी रगों में तेरे लम्स<ref>स्पर्श</ref> की चुभन तक आएआए।
अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस<ref>घने जंगल में खिलने वाला फूल</ref> को,अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आएआए।
तमाम रिश्ते भुलाकर मैं काट लूँगा इन्हें,अगर ये हाथ कभी मादरे-वतन तक आएआए।
जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना',कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक आए</poem>{{KKMeaning}}आए।