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रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी,
इस दौर में अब इतनी मदारात<ref>हमदर्दी</ref> बहुत है ।
दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम,
कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है ।
फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना'<ref>स्वाभिमान</ref>से,
अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है ।
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