महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास<ref>अपरिचित</ref> मगर मुस्कुराया हाथ ।
फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा<ref>सुबह की ख़ुशबूदार हवा</ref> ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।
यूं ज़िन्दगी से मेरे मरासिम<ref>तअल्लुक़ात</ref> हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।
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