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बात कुछ तो है के तू अख़बार के ख़ानों में है
निस्फ़ शब<ref>आधी रात</ref> तो ग़र्क़ मेरी जमोंउसकी जामो-पैमानों में हैऔर बाक़ी जो है वो तस्बीह<ref>जाप की माला</ref>के दानों में है
हम मतन <ref>मूल उद्धरण</ref>पढ़ते रहे लेकिन अब आया ये दिमाग़
लुत्फ़ तो सारे का सारा हाशिया ख़ानों में है
क्यों घुमें ये हाथ क्यों जुंबिश तिरे शानों में है
क्या कहें इसको, सरे मक़तल<ref>वधस्थल</ref>था जो ख़ंजर बकफ़वो बरहना सर हमारे अली के मरसिया ख़्वानों में है
सर बकफ़<ref>हथेली पर सर</ref>फिरता हूँ शहर में तनहा, के कि सुन
ख़ौफ़ कैसा जब के वो मेरे निगहबानों में है
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