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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
ऐ दिले नादां दिला मत याद कमताली के दिन।
भूल पाया हूँ बड़ी मुश्किल से पामाली के दिन।

शाम कल बेताब शायर बात दिल की कह गया,
याद जब आये उसे फूलों लदी डाली के दिन।

राज शायद सिर्फ़ इसका जानता है हरसिंगार,
कैसी होती रात, कैसे होते शेफाली के दिन।

फिक्ऱ में बस रात की रंगीनियाँ हैं नाचती,
आये किसकी फिक्ऱ में कब, नाचने वाली के दिन।

उनसे बस्ती का अँधेरा मिट सकेगा किस तरह,
जो उजाला बाँटते हैं, सिर्फ़ दीवाली के दिन।

आस टूटी है नहीं ‘उम्मीद’ जिन्दा है अभी,
अपने घर भी आयेंगे, इक रोज़ ख़ुशहाली के दिन।

हो रही ज़ख़्मी अदब की रूह ये क्या दौर है,
इल्मो-फन के आ गये ‘विश्वास’ बिकवाली के दिन।
</poem>
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