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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
बेचैन को भी चैन पलभर में दिला देता है वो।
रोते बिलखते शख़्स को खुलकर हँसा देता है वो।

करता नहीं है अक़्ल का पीटा ढिंढोरा जा-ब़-जा,
जो माँगता है सिर्फ़ उसको मश्वरा देता है वो।

जो आहटें तूफान की पहचान पाते हैं नहीं,
रंगीन चश्मा उनकी आँखों से हटा देता है वो।

इन्साफ का उसके गणित अबतक समझ पाये न हम,
नाराजगी पर रात की दिन को सजा देता है वो।

पहुँचा रहे तालीम की जो तीरगी तक रौशनी,
हर कामयाबी पर उन्हें दिल से दुआ देता है वो।

जो भी बिता ले साथ उसके ज़िन्दगी के चार दिन,
उसको सुना है शायरी करना सिखा देता है वो।

‘विश्वास’ दे सकता नहीं पुख्ता मुहब्बत के सबूत,
उड़ती खबर, बेनाम ख़त लिखकर जला देता है वो।
</poem>
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